पीढ़ी पीढ़ी देश लूटा,
इसको काटा उसको चूंटा
कर रहे शुरूआत से
राष्ट्र का व्यापार तुम..
फिर दोषी ये सरकार क्यों?
बाँटते हो नफरतें,
खेलते हो खून से,
हो देश के गद्दार तुम,
है दुश्मनों से प्यार क्यों ?
फिर दोषी ये सरकार क्यों..?
काले धंधे तुम करते आए,
जेबें अपनी भरते आए..
देश मेरा बदहाल किए,
खाली सब भंडार किए..
ये व्यर्थ का हाहाकार है क्यों?
और दोषी फिर सरकार है क्यों?
अक्षिणी
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