ईमानदार आम आदमी हर रोज सुबह से शाम दुश्वारियों के दौर से गुजरता मजबूरियों की आह भरता है, लाचारियों के आंसू पोंछता है, चढ़ाया जाता है हर बार धनिए के झाड़ पर और फिर छला जाता है वतनपरस्ती के नाम पर शहीद हो जाता है, एक बार फिर ....
अक्षिणी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें