इस शोख कलम को क्या कहिए?
रुकते झुकते चल जाती है,
मौज़ों में मेरी हंस देती है,
आँसू में मेरे ढल जाती है..
बदबख़्त कलम के क्या कहिए
भावों सी मचल जाती है,
चाहों सी बहक जाती है पन्नों पर,
राहों सी उलझ जाती है...
खुशबू सी बिखरती है हर्फों में
यादों सी महक जाती हैं..
सीधी सच्ची सह लेती है..
लाख बरज लो इसको पर,
मन की सनकी सब कह जाती है..
अक्षिणी
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