शनिवार, 13 दिसंबर 2025

आह बिना चाह क्या?

आह बिना चाह क्या, 
चाह बिना राह कहाँ?

ताप बिना आँच क्या, 
आँच बिना साँच कहाँ?

लहर बिना भँवर नहीं, 
भँवर बिना सफर कहाँ?

धूप बिना छाँव नहीं, 
छाँव बिना ठाँव कहाँ?

ज़हर बिना असर नहीं,
असर बिना कदर कहाँ?

रात बिना बात क्या,
सुबह बिना रात कहाँ?

~अक्षिणी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें