गुरुवार, 11 सितंबर 2025

आसान है..बहुत ही आसान..

आसान है झुग्गियों को बरगलाना
झोंपड़ियों को महल दिखाना
सहज है झोंपड़-पट्टियों में 
छद्म क्रांति की आग लगाना

गरीब-गुरबों को बहकाना
क्रांति के स्वप्न दिखाना
विद्रोही विचारों से श्रमिकों को
सरकार के विरुद्ध भड़काना

युवाओं को भटकाना
डफली बजाना
आग लगाना
बम बनाना सिखाना।

आसान है गुटखे चबाना
दाढ़ी और बाल बढ़ाना..
चाय की थड़ी पर बैठ
धुएँ के छल्ले उड़ाना..

आसान है देश-दुनिया की
सरकारों पर अंगुली उठाना..
मेहनतकशों के हाथ से
यहाँ-वहाँ तबाही मचाना..

आसान है मेहनतकशों को
बातों के लच्छों में फँसाना..
आसान है गरीब-गुरबों को 
साम्यवाद की चाशनी चटाना..

आसान है हर शहर के छोर 
कच्ची बस्तियों में आना
लाशों की आँच पर अपनी
राजनीति की रोटियाँ सिंकवाना..


..बहुत ही आसान..

~अक्षिणी

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

ढब जा ए इंदर राजा..

खेतां ऊबी ज्वार गळगी, 
साग थी आखी क्यार गळगी
त्राहि-त्राहि मिनख बोळगो
ढब जा ए इंदर राजा,घणो हो ग्यो

जेठ लागतां चालू होगो
सावण बीतो भादो चाळगो
इश्यो-किश्यो चौमासो होगो
ढब जा ए इंदर राजा,घणो होग्यो

गांव डूब ग्या, ठांव डुब ग्या
ढोर-ढंगर आजी आया..
सूरज बापड़ो ठंडो पड़गो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो..

टिमाटिरां को भाव बढ़ ग्यो 
किंकोड़ा ताईं ताव चढ़ ग्यो..
दो सौ रिप्यां को धणो होग्यो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो 

गांव-गुवाड़ी खाड़ा पड़गा,
सड़कां माथे गाड़ा गड़गा..
ढाणी-पाणी रोळो होग्यो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो..

~अक्षिणी