स्त्री के गिरने से
नहीं मिलती ऊँचाईयाँ
ब्रह्मांड को
या किसी और को..
गिर कर सँभलों यदि
तो संभवतया
कर पाओ कुछ भला..
प्रेम देता
अनंत संभावनाएँ
ब्रह्मांड को
और सृजन?
मुँह जोहता
भावों की गरमी का
ना कि
हाथों की नरमी का..
कम नहीं होता
खुरदरी हथेलियों
का दुलार..
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