शनिवार, 1 नवंबर 2025

नौकरियाँ


जो तुमसे तुम्हारा आप छीन लेती हैं,
तुम्हें मनुष्य से रोबोट बना देतीं हैं

जो भीतर के कवि को तोड़ देती हैं,
और तुम्हारे मान का मन निचोड़ देती हैं..

जो तुम्हें सलाम बजाना सिखाती हैं,
तुम्हारे काँधों का वेताल बन जाती हैं..

जो तुम्हें सुख-दुख से परे कर देती हैं,
शादी-ब्याह वार-त्योहार भुला देती हैं..

जो तुम्हारे वेतन में वृद्धि तो करती हैं,
तुम्हारी जीवन शक्ति छीन लेती हैं..

तुम्हारी थाली में रोटी परोसती हैं,
भूख,प्यास,समय, इच्छा नहीं देतीं..

जो नौकरियाँ नौकरियाँ नहीं रहती, 
शनै: शनै: वही जीवन बन जाती है..

~अक्षिणी 




गुरुवार, 11 सितंबर 2025

आसान है..बहुत ही आसान..

आसान है झुग्गियों को बरगलाना
झोंपड़ियों को महल दिखाना
सहज है झोंपड़-पट्टियों में 
छद्म क्रांति की आग लगाना

गरीब-गुरबों को बहकाना
क्रांति के स्वप्न दिखाना
विद्रोही विचारों से श्रमिकों को
सरकार के विरुद्ध भड़काना

युवाओं को भटकाना
डफली बजाना
आग लगाना
बम बनाना सिखाना।

आसान है गुटखे चबाना
दाढ़ी और बाल बढ़ाना..
चाय की थड़ी पर बैठ
धुएँ के छल्ले उड़ाना..

आसान है देश-दुनिया की
सरकारों पर अंगुली उठाना..
मेहनतकशों के हाथ से
यहाँ-वहाँ तबाही मचाना..

आसान है मेहनतकशों को
बातों के लच्छों में फँसाना..
आसान है गरीब-गुरबों को 
साम्यवाद की चाशनी चटाना..

आसान है हर शहर के छोर 
कच्ची बस्तियों में आना
लाशों की आँच पर अपनी
राजनीति की रोटियाँ सिंकवाना..


..बहुत ही आसान..

~अक्षिणी

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

ढब जा ए इंदर राजा..

खेतां ऊबी ज्वार गळगी, 
साग थी आखी क्यार गळगी
त्राहि-त्राहि मिनख बोळगो
ढब जा ए इंदर राजा,घणो हो ग्यो

जेठ लागतां चालू होगो
सावण बीतो भादो चाळगो
इश्यो-किश्यो चौमासो होगो
ढब जा ए इंदर राजा,घणो होग्यो

गांव डूब ग्या, ठांव डुब ग्या
ढोर-ढंगर आजी आया..
सूरज बापड़ो ठंडो पड़गो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो..

टिमाटिरां को भाव बढ़ ग्यो 
किंकोड़ा ताईं ताव चढ़ ग्यो..
दो सौ रिप्यां को धणो होग्यो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो 

गांव-गुवाड़ी खाड़ा पड़गा,
सड़कां माथे गाड़ा गड़गा..
ढाणी-पाणी रोळो होग्यो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो..

~अक्षिणी



शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

ग़ज़ल चोर..

कमाल करतें हैं आप, मिसरे भर की बात करते हैं आप,
लोग रदीफ, काफ़िए संग पूरी ग़ज़ल पे हाथ करते हैं साफ..

बरसात..

बावली बरसात ज्यों, 
भूली हुई कोई याद ज्यों..
मुझसे मिली वो रात यों, 
सीली-सीली कोई बात ज्यों..


बरसात की रातें हैं, बातें मुलाकाते है,
यादों की नगरी में सौंधी-भीगी बरसाते है..

बरसात की रातें है 
बातें है और मुलाकातें है 
कविता करे या शायरी,
बेईमानी के इरादे हैं..



रोटी अब..

👌

चूल्हा रहा न रोटी अब,
रसोई हो गई छोटी अब
दिखती नहीं कहीं,
वो घी की घी-लोटी अब..
मिट चुका है धुएँ का नाम भी,
कौन करेगा टेम खोटी अब?
जोमेटो कराती है वोटी अब..
पिज़्ज़ा-बर्गर डबलरोटी सब
संभल कर मांगना रोटी अब,
वोटी उठा रही है सोटी अब..

*वोटी/वोट्टी - पत्नी

~अक्षिणी

मंगलवार, 15 जुलाई 2025

लिखो..

लिखो..

लिखो कि श्वास है अभी
निज मन विश्वास है अभी..

लिखो कि आंच है अभी
मनों में सांच है अभी..

लिखो समय की तान पर,
लिखो मनई के मान पर..

लिखो कि रात ढल चुकी,
दीयों के साथ जल चुकी..

लिखो कि रात ढल सके,
नये चिराग जल सके..

लिखो प्रणय की रीत भी,
लिखो मिलन के गीत भी.

लिखो कि वज्र डोलता,
समर के बोल बोलता..

लिखो हृदय को चीर कर,
मनुज हृदय की पीर पर..

लिखो कि वीर पुत्र हो,
लिखो कि दिव्य दूत हो..

लिखो कि बांच लें सभी,
धीरता को जांच लें सभी..

लिखो पिता का ध्यान कर,
पितृ ऋण का भान कर..

लिखो यूँ मातृ रूप को,
छाँव दे जो धूप को..

लिखो समय की रेत पर,
मनुज चरण की हेत भर..

~अक्षिणी