रविवार, 20 अक्तूबर 2024

वो फिर मिली..!

और वो फिर मिली....
शांत, सौम्य, क्षम्य..

और वो फिर मिला....
एकाकी,विवश,उद्विग्न..

और वो फिर मिला....
निःशब्द, निस्तेज,क्लांत..

और वो फिर मिला....
निःशब्द, निस्तेज नितांत..

और वो फिर देखती रही....
अपलक,हतप्रभ,स्तब्ध..


~अक्षिणी 

बातें सीली-सीली सी..

बातें..!
बातें ही तो होती हैं..
बातें ही तो होती हैं..
बातें ही तो चलती हैं..
बातें ही तो छलती हैं..
बातें ही घाव करती हैं..
बातें ही भाव भरती हैं..
बातें ही तो साँस लेती हैं..
बातें ही जान ले लेती हैं..
बातें ही कहानी बुनती हैं..
बातें ही कहानी चुनती हैं..
बातें ही तो होती हैं..
बातें..!
बातें खुली-खुली सी..
दूध सी धुली-धुली सी..
बातें खिली-खिली सी..
मन से मिली-मिली सी..
बातें उड़ी-उड़ी सी,
टूटी जुड़ी-जुड़ी सी..
बातें बुरी-बुरी सी..
मीठी छुरी-छुरी सी..
बातें अटी-पटी सी..
जड़ से कटी-कटी सी..
बातें छोटी-बड़ी सी..
बातें खोटी-खरी सी..
#बातें
बातें ही तो हैं..
दौड़ कर भी किधर जाएंगी..
कुछ देर चलेंगी, सिमट जाएंगी..
किसी मोड़ पर छिटक जाएंगी..
बनते-बनते ही बिगड़ जाएंगी..
हिरनी सी भरेंगी छलांगें,
तुरंगों सी बिदक जाएंगी..
बातें ही तो हैं..
घर से जो निकली तो,
घर-घर घर जाएंगी..
#बातें

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

पढ़ ले प्यारे..

खुली किताब सी ज़िन्दगी 
लम्हा-लम्हा पढ़ ले प्यारे
पन्ना-पन्ना पढ़ता जा रे
कोरे कागज़ दिन हैं सारे
सफहा-सफहा जैसे तारे..

सूखी कलमें फीकी स्याही
भीगे आखर, मौन गवाही..
हर्फ़-हर्फ़ जलते अंगारे..
पन्ना-पन्ना पढ़ता जा रे..

#पुस्तक_दिवस..

गुरुवार, 15 अगस्त 2024

स्वतंत्रता के माने क्या?

स्वतंत्रता के माने क्या?
आज़ादी के बहाने क्या?
बंधन सब खुल जाने भर?
आज़ादी के अफसाने भर?
कुर्सी की सेवा टहलाने भर?
जेब भरने के बहाने भर?
सेंधमारी हर ख़ज़ाने पर?
लाज-शर्म सब मर जाने पर?
रेतों से पुल चुनवाने भर?
देश-धर्म सब बिक जाने भर?
नियत के भर ना पाने भर?
जनता का पैसा खाने भर?

तुझे प्रणाम..

स्वतंत्रता और संप्रभुता  के
वर्ष अठत्तर तुझे प्रणाम 
जल थल नभ ऊर्जा से सिंचित
वंदन प्रखर तुझे प्रणाम 
जन गण मन प्रमुदित मुखरित 
हे विश्व प्रवर तुझे प्रणाम 
वेदांगी दुर्वा से पोषित भारत के
हे सत्य सनातन तुझे प्रणाम
हिमगिरि के मिति क्षितिज पर 
विचरित ओ मधुकर तुझे प्रणाम
कोटि-कोटि कंठों से गुंजित,
जय भारत के आल्हादित 
स्वर तुझे प्रणाम..
जय हिंद। जय भारत।।

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

मैं समय हूॅं..

मैं समय हूँ..
संहार हूँ,मैं ही प्रकट प्रलय हूँ
विषाद भी,मैं ही विकट विषय हूँ
संतापहरण,दुखियों का संचय हूँ
हूँ विश्वास अडिग,फिर भी संशय हूँ
मैं समय हूँ..
स्मृतियों की सरिता का जल निर्मल हूँ
इतिहासों की साखी,मैं ही गत-निर्गत हूँ
सच निर्मोही मैं,मैं ही अगत निर्मम हूँ
मैं समय हूँ..
संहार हूँ,मैं ही प्रकट प्रलय हूँ
विषाद भी,मैं ही विकट विषय हूँ
मैं समय हूॅं..
संतापहरण,दुखियों का संचय हूँ
विश्वास अडिग,फिर भी संशय हूँ
मैं..
स्मृतियों की सरिता का जल निर्मल हूँ
इतिहासों की साखी,मैं ही गत-निर्गत हूँ
सच निर्मोही,मैं ही सत अगम-निर्मम हूँ
मैं समय हूँ..
काल हूँ मैं,अकाल भी अग्नि हूँ मैं,भस्म भी
जन्म-मृत्यु के परे मैं सनातन ध्वंस हूँ 
हर घटी में चन्द्र हूँ,जीवितों में छन्द हूँ
निर्जीवों में जीव मैं हूँ अशेष मैं,शेष भी
मैं ही कालहीन त्रिकाल हूँ
सत्य-असत्य से परे, मैं तीक्ष्ण मृत्यु नाद हूँ
हूँ काल मैं, त्रिकाल भी, मैं महाकाल हूँ..

~अक्षिणी

शनिवार, 23 मार्च 2024

बिखरता नहीं कभी..

टूटता नहीं कभी..
हाँ मगर रिसता है,
दरार दर दरार..
दिखता नहीं कभी..
हाँ मगर टीसता है,
करार दर करार..
बिखरता नहीं कभी..
हाँ मगर सीलता है,
मन, दर-ओ-दीवार..

या के..

वो पानी क्या जो बँध जाए?
वो बाँध क्या जो टूट जाए?
सूख जाए तो ज़ख़्म क्या?
वो नेह क्या जो छूट जाए..

~अक्षिणी