जो तुमसे तुम्हारा आप छीन लेती हैं,
तुम्हें मनुष्य से रोबोट बना देतीं हैं
जो भीतर के कवि को तोड़ देती हैं,
और तुम्हारे मान का मन निचोड़ देती हैं..
जो तुम्हें सलाम बजाना सिखाती हैं,
तुम्हारे काँधों का वेताल बन जाती हैं..
जो तुम्हें सुख-दुख से परे कर देती हैं,
शादी-ब्याह वार-त्योहार भुला देती हैं..
जो तुम्हारे वेतन में वृद्धि तो करती हैं,
तुम्हारी जीवन शक्ति छीन लेती हैं..
तुम्हारी थाली में रोटी परोसती हैं,
भूख,प्यास,समय, इच्छा नहीं देतीं..
जो नौकरियाँ नौकरियाँ नहीं रहती,
शनै: शनै: वही जीवन बन जाती है..
~अक्षिणी