चरित्र की देहरियां
अपनी-अपनी..
कोई करज के लिए..
कोई फरज के लिए..
हवस की ड्योढ़ियां
अपनी-अपनी..
कोई सहन के लिए..
कोई दहन के लिए..
मर्द हो के औरत,
चाह की मजबूरियां
अपनी-अपनी..
कोई परस के लिए..
कोई दरस के लिए..
यूंँ ही कोई अपने जिस्म की
जरूरतों पे तमाम नहीं होता.....!!
~अक्षिणी
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