रविवार, 22 जुलाई 2018

दस्तक..

बस यही सोच कर
दस्तक नहीं देते तेरे दर
कहीं तू ये न कह दे
कल ही तो मिले थे..
शिकवा तुझ से नहीं,
तेरी नज़दीकियों से है..
तुझ तक पहूँचें और
सफर वहीं थम न जाए..

अक्षिणी

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

बच्चों को बच्चा रहने दो..

बच्चों को बच्चा रहने दो,
जो मुँह में आए कहने दो..
बच्चों को बच्चा रहने दो,
जो जी में आए करने दो..

हाथ की थाप ना लग पाए,
साँच की आँच ना छू पाए
तप के न कहीं ये पक जाए,
माटी के इन घड़ों को
कच्चा रहने दो..

बच्चों को बच्चा रहने दो..

अक्षिणी

रविवार, 1 जुलाई 2018

कब तक..

गुस्सा कम बेचारगी का
अहसास ज्यादह..
हर बार की तरह शोर होगा
कुछ मोमबत्तियाँ जलेंगी
कुछ तसवीरें होंगी
लम्बी बड़ी तकरीरें होंगी
जुलूस निकाले जाएंगे
नारे लगाए जाएंगे
फिर बगैर कुछ किए
घर जा कर सो जाएंगे,
किसी और चीख की
आवाज़ पर जागने के लिए,
यही सब कुछ दोहराने के लिए..
आखिर कब तक..?

अक्षिणी

एक कोख फिर..

सहमा सा  है हर कदम
डरा डरा सा है ये मन
कातर आँखों में छलक
आई है बेबसी
मासूम चेहरे पे झलक
आई है बेचारगी
छली गई है बिटिया
एक बार फिर
उजाड़ी गई है नन्ही सी
एक कोख फिर..
हैवानियत की हदों के पार,
शब्द नहीं बस सन्नाटे हैं
वहशी हवस के थपेड़ों की मार
पत्थर भी चीखे जाते हैं..
जाने कैसे ये भेड़िए
ईंसान कहे जाते है..

#भेड़िए

अक्षिणी