रविवार, 30 अप्रैल 2017

तुम हो तो हम हैं..

तुम नहीं तो कुछ नहीं,
तुम हो तो हम हैं..

तेरी सुरत को तरसे मेरा मन,
तेरी सीरत को मचले आँगन..

तुम्हें याद करती हैं
करवटों की सलवटें.
सुनना चाहती हैं,
तेरे कदमों की आहटें.

जो तुम हो तो हर खुशी है,
तुम से ही ये ज़िंदगी है..

तेरे बगैर चुभता है,
सलोना बिछौना
तेरी राह तकता है
कोना कोना..

तुमसे ही मेरे कदमों में खम है..
तुमसे ही मेरे शब्दों में दम है..

दिल तोड़ता है तेरा
यूं रोज़ न आना..
देर से आ के कोई
बहाना बनाना..

तुम हो तो मेरी आवाज़ में सुरूर  है,
तुम हो तो मेरे  चेहरे पे नूर है..

तुम हो तो सजती हूँ
मैं सुहागन की तरह..
तुम ना आओ तो लगती हूँ 
एक डायन की तरह..

मेरी हस्ती है तेरे कारण..
सारी मस्ती है तेरे कारण..

मेरी काम वाली बाई ..
तुम हो तो मैं हूँ,
जो तुम नहीं तो
कुछ भी नहीं..

अक्षिणी भटनागर

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

हिन्द के जवान..

हिन्द के जवान ये हिन्द का निशान हों,
हिन्द इनकी जान है तो हिन्द की ये जान हों,

जो खौलता है खून ये तो खौलने दो खून को,
जो तोलते हैं खून से तो तोलने दो खून को,
रोकने का हक नहीं है, टोकने का हक नहीं है,
दे रहे हैं जान ये, दे रहे हैं प्राण ये..
हिन्द के जवान ये..

तोहफों को भूल कर बन्दूकों की बात हो,
गर्दनों के नाम पर गर्दनों की घात हो,
रोकने का हक नहीं है ,टोकने का हक नहीं है,
दे रहे हैं जान ये , दे रहे हैं प्राण ये..
हिन्द के जवान ये..

ये खेलते हैं खून से तो खेलने दो खून से,
ये लड़ रहें हैं जान पे,ये लड़ रहे जुनून से
रोकने का हक नहीं है,टोकने का हक नहीं है,
दे रहे हैं जान ये, दे रहे हैं प्राण ये,
हिन्द के जवान ये..

मर मिटे हैं मुल्क पे तो मुल्क इनके साथ हो,
चल पड़े हैं जो जंग पे तो देश इनके साथ हो,
रोकने का हक नहीं है,टोकने का हक नहीं है,
दे रहे हैं जान ये, दे रहे हैं प्राण ये..
हिन्द के जवान ये..

अक्षिणी भटनागर

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

लिखते हैं..

'इंतिहा'लिखते थे कभी तेरी ख़ातिर,
उम्र गुज़री है तेरे जलवों के लिए,
तेरे कौलों, तेरे लफ्ज़ों की ख़ातिर ,
तेरी महफिल में अपने चरचों के लिए..

खूब  सिखाया तेरे इश्क ने हमें,
आज लिखते हैं चंद परचों के लिए.
काम आया है वो फन बरसों बाद,
दाल रोटी  के चार खरचों के लिए..

अक्षिणी भटनागर

रविवार, 23 अप्रैल 2017

या रब....

तू समंदर है तो मेरी कश्ती को डुबो दे या रब,
तू सितमगर है तो मेरी हस्ती को मिटा दे यारब.
जो हमसफर है तो ज़रा  देर मेरे साथ  भी चल,   वरना  'इंतिहा' सारी बस्ती को जला दे या रब.

अक्षिणी भटनागर

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

अक्षिणी के दोहे..

भेजा जो चाटन मैं चला, भेजा मिला न मोय,
जो सर खोजा आपना , भेजा पड़ा था सोय.

निर्मम धागा प्रेम का , मत जोड़ो कविराय,
चैन नहीं दिन रैन और मतिभ्रष्ट होई जाय.

खरबूजे से खरबूजा मिले, बदले रंग हजार,
ना बदले तो बिके नहीं, सड़ता बीच बजार.

सभी जन चमचे राखिए,बिन चमचे सब सून,
चमचा जंतर साध के ,  साहिब बनो लंगूर..

जीभ पे शक्कर राखिए , मन में फांस दबाय.
पीठ पे काँटे बोइए,  फिर माटी दियो चटाय.

तलवे चाटत सुख मिले,नाक लियो कटवाय,
ठकुर सुहाती कीजिए, का अपनो घटि जाय.

मुख देखी सब प्रीत है, मतलब के सब मीत.
भाई बंधु राम सब , हानि लाभ की रीत..

अक्षिणी भटनागर..

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

कर्म का पंछी..

क्या लेना है इन तकदीरों को,
सीधी सच्ची तदबीरों से ..
कर्म का पंछी उड़ता जाए,
भाग की बंसी ना सुन पाए..

हाथ की उलझी चंद लकीरों ने,
भाग को बांधा किन जंजीरों में.
कर्म का पंछी जोर लगाए,
भाग के बंधन ना खुल पाए.

कर्म की झूठी इन तकरीरों ने,
खूब छला है इन तहरीरों ने.
फिर फिर मन ये आस लगाए,
भाग के लेखे ना मिट पाएं..

क्या लेना है इन तकदीरों को,
सीधी सच्ची तदबीरों से.
कर्म का राही छलता जाए..
भाग का मारा जी न पाए..

अक्षिणी भटनागर

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

हम..

जग तो रहेगा,
हम रहे न रहे.

कुछ तो रहेगा,
सब रहे न रहे.

दुख तो रहेगा,
सुख रहे न रहे.

रब तो रहेगा,
कोई रहे न रहे.

अब तो रहेगा,
कल रहे न रहे.

अक्षिणी भटनागर

हारी नहीं हूँ..

अभी रहती है एक मुलाकात,
अधूरी है अभी तेरी मेरी बात,
यूं पहलू न बदल ज़िंदगी,
तू अभी जीती नहीं है..
मैं अभी हारी नहीं हूँ..

अभी बाकी हैं कुछ आहें,
अभी रहतीं हैं कुछ चाहें.
कुछ कर्ज़ अभी रहते हैं,
कुछ फर्ज़ अभी रहते हैं,
पीर की गागर अभी रीती नहीं है..
तू अभी..

अभी भरनी हैं कुछ शर्तें,
अभी खुलनी हैं कुछ गिरहें,
तेरे कुछ सवाल अभी बाकी हैं,
मेरे कुछ जवाब अभी बाकी हैं,
नेह की चादर अभी सिमटी नहीं है..
तू अभी..

थोड़े आँसू अभी बहने हैं,
थोड़े जख़्म अभी भरने हैं,
धूप और बरसात अभी बाकी है,
मेरी शह तेरी मात अभी बाकी है,
तारों की बारात अभी बिखरी नहीं है..
तू अभी  ...

अक्षिणी भटनागर

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

चाहत..

तुझको चाहा तो नहीं,
तेरी इबादत किया करते हैं..
ये बात अलग है कि
लोग इसे मुहब्बत कहा करते हैं..

अक्षिणी भटनागर

वो कफन..

है शर्म अगर तो सजदा कर ले,
वो वतन को जाँ कर के निकला है घर से.
इन उधार के पत्थरों से तौबा कर ले,
वो कफन बाँध के निकला है अपने घर से.

दौड़ आया है लड़ने के लिए,
तेरे ख्वाबों को सजाने खातिर..
छोड़ आया है वो अपनों को कहीं,
तेरे घर को बचाने खातिर..

ख़ैर चाहे तो ये पत्थर न उठा,
उसकी वर्दी पे निशाना न लगा..
गैर मुल्कों से मुहब्बत न बढ़ा,
अपनी हस्ती का तमाशा न बना..

हाथ रोके जो यूं चुपचाप खड़ा है ,
उसको कायर न समझ..
चीर के रख देगा एक पल में,
उसको लीडर न समझ..

खाक हो जाएगा वो तेरी ख़ातिर,
उसको जख़्म दे के यूं खुशियाँ न मना.
पाक के नापाक इरादों को समझ,
अपने हाथों से तू जन्नत न जला..

जान देकर भी जो ज़िंदा रहेगा,
उसके लिएआसमां रोएगा,रोएगी ज़मी..
तेरी हस्ती का निशां भी न रहेगा,
उसके कदमों को तो चूमेगी ज़मीं..

वो कफन बाँध के निकला है अपने घर से..
वो वतन को जाँ कर के निकला है घर से..

अक्षिणी भटनागर..

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

साईंयां..

तुलसी राम को आप कहे, सूर कृष्ण 'तू'कार,
अपना अपना साईंयां, जो चाहे लो पुकार..

अक्षिणी भटनागर

शनिवार, 8 अप्रैल 2017

बंदिश..

चाह ने तेरी ए जिंदगी बाँधा है कुछ इस तरह,
खुलते नहीं हैं इन दिनों ख़ुद से भी हम.
होते तो हैं रूबरू आईने से हम पहले की तरह,
मिलते नहीं हैं इन दिनों ख़ुद से भी हम.

अक्षिणी भटनागर

ज़िंदगी..

किसी किसी को ही मिला करती है,
यूं तो हर शख़्स तुझे तलाशता है.
किसी को ज़िंदगी का इंतजार होता है,
तो किसी का ज़िंदगी को इंतजार होता है.

अक्षिणी भटनागर

याद..

यादों को समेटे बहते हैं जीवन नदिया के धारे,
कड़वी ही सही,जीने को बहुत हैं यादों के सहारे.

अक्षिणी भटनागर

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

मैं..

पानी सी हर रूप रंग में ढल जाऊं,
बस राह मैं अपनी  कर जाऊं.

ताब-दाब सब सह जाऊं,
बस मस्त पवन सी लहराऊं.

धूप-घाम संग रह जाऊं,
मैं नील गगन सी गहराऊं.

धरती बन सब सह जाऊं,
अपनी धुरी पर चलती जाऊं.

जलती जाऊं तपती जाऊं,
अग्नि सी मैं निखरी जाऊं..

अक्षिणी भटनागर

आप के पाप..

ये आप के पाप,
दिल्ली के हैं श्राप
दिल्ली तुझको,
करना होगा पश्चाताप

ये आप के आप,
नोट रहे हैं छाप
आस्तीन के साँप,
और साँपों के बाप

ये आप के आप,
काम हैं इनके झाड़ू छाप
जनता रखती सबकी माप,
नहीं करेगी अबकी माफ

ये आप के आप,
एल जी निकले आप के बाप,
कान के नीचे दे दी झाप
आप के आप अब रस्ता नाप

अक्षिणी भटनागर

रविवार, 2 अप्रैल 2017

अथ श्री -------- पुराण

समस्त संत- संतनियों को प्रणाम,
शुरू करते हैं लेकर राम का नाम.
खाली स्थान छोड़ा है जान बूझ कर ,
चर्चा जिसकी है उसे रखते नहीं सर पर.
मिलते हैं ये भांति भांति के,
सब जाति और प्रजाति के.
काठियावाड़ी चोंचदार
तो जोधपुरी नोकदार,
कोल्हापुरी दमदार
तो कानपुरी रोबदार
नया हो तो जगमगाए,
और पुराना चरमराए
चाँदी का चुभ जाए,
और चमड़े का काट खाए
भीगा हो तो पटपटाए,
घिसा हो तो सरपटाए
साली छुपाए तो माल कमाए
देवर छुपाए तो कुछ ना पाए
जनता का हथियार बने
राजनेता पर ये वार बने
आदमी की ये हैसियत बताए
और औरत की उम्र बताए
अक्ल का इलाज है ये
पैरों की सबके लाज है ये
पड़ता तो हवाई है और
चलता तो सवाई है.
जैसे तैसे कथा सुनाई है
समझ गए तो बधाई है..

अक्षिणी भटनागर

माँ..

माँ चाह तेरी हो राह मेरी,
जो तुझ पे यकीं,
खुद पे भी नहीं..

ना जानूँ माँ पूजन अर्चन
कैसे हों अब,
तेरे दर्शन.

माँ मन में तेरा नाम रहे,
तेरा साथ रहे ,
तेरा हाथ रहे.

अक्षिणी भटनागर

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

कोई समंदर...

कोई समंदर हो तुम
                 या एक लहर भर
देर तक साथ हो तुम
                 या एक पहर भर
कोई रोशनी हो तुम
                 या एक सहर भर
कोई मंजिल हो मेरी
                या एक सफर भर
चंद टुकड़े ज़िंदगी
                या फिर उमर भर
वाकई मौत हो तुम
                या बस जहर भर
'इंतिहा' उसे दोस्त कह दे
                या कोई बशर भर..

अक्षिणी भटनागर