रविवार, 12 मार्च 2017

फागुन

रुत आई है देखो फागन की,

रंग खेलन की, रस बरसन की,
रस लूटन की, मन हरसन की,
तन रंगन की, मन रंजन की,
मनमोहन छवि नंदनंदन की,
रुत आई है देखो फागन की.

हाथ गुलाल जो श्याम लिये हो ,
लाल गुलाब सों गाल किये हों.
फाग उड़े फिर राग रचे,
राधा के संग जो श्याम सजे.
रुत आई है देखो फागन की..

टोरी चले जब लरिकन की,
गारी पड़े फिर गोपियन की.
होरी मचे इन गलियन में तो,
बोली उड़े फिर लठियन की.
रुत आई है देखो फागन की..

तन नर्तन की , मन हरसन की..
रस लूटन की , रंग बरसन की..
रुत आई है देखो फागन की.

अक्षिणी 

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