रविवार, 18 जून 2017

माफ कीजिएगा..

माफ कीजिएगा दोस्तों,
यह नहीं हो पाएगा..
बहुत कोशिश की रात भर,
कि चैन से सो जाएं..
इस उदास मन को भरमाएं,
सीने पे पत्थर रख पाएं..
टूटे दिल को आस बँधाएं,
कोई नया स्वप्न दिखाएं..
कठिन नहीं असंभव है,
इस दंश को भूल पाना..
घर के दामन पे लगे,
इस दाग का धुल पाना..
मदहोशी में ये क्या कर आए,
आँखों में अपनी धुआँ भर आए..
कैसे हो अपना त्राण..?
कौन करे अब कल्याण..?
पाक के हाथों अपनी  हार,
नहीं सही जा रही मेरे यार..
बहुत चाहा कि जी बहलाएं,
क्रिकेट की हार पर,
हाकी की जीत का मरहम लगाएं..
बैडमिंटन में रम जाएं..
कोई कहे इन बल्लाधारियों से,
इन बल्लों से ज़रा कपड़े कूट जाएं..
गेंद को ज़रा तेल पानी पिलाएं..
और विश्व कप ले कर आएं,
पाक के छक्के छुड़ाएं..
फिर हमको मुंह दिखाएं..
शायद तब ये दर्द कम हो पाए..

अक्षिणी

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