खेतां ऊबी ज्वार गळगी,
साग थी आखी क्यार गळगी
त्राहि-त्राहि मिनख बोळगो
ढब जा ए इंदर राजा,घणो हो ग्यो
जेठ लागतां चालू होगो
सावण बीतो भादो चाळगो
इश्यो-किश्यो चौमासो होगो
ढब जा ए इंदर राजा,घणो होग्यो
गांव डूब ग्या, ठांव डुब ग्या
ढोर-ढंगर आजी आया..
सूरज बापड़ो ठंडो पड़गो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो..
टिमाटिरां को भाव बढ़ ग्यो
किंकोड़ा ताईं ताव चढ़ ग्यो..
दो सौ रिप्यां को धणो होग्यो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो
गांव-गुवाड़ी खाड़ा पड़गा,
सड़कां माथे गाड़ा गड़गा..
ढाणी-पाणी रोळो होग्यो..
ढब जा ए इंदर राजा, घणो होग्यो..
~अक्षिणी
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