मंगलवार, 2 मार्च 2021

कुछ शामें..

कुछ शामें तुम सी होती हैं
सिन्दूरी, गहराई हुई..
मौन पर मुखर..
दुलराते हैं शब्द तुम्हारे
दूर कहीं से छन कर आते
सहला जाते हैं धीमे से
टीस के सिरे..

हाँ! तुम ही तो हो वो गीत
जिसे गुनगुना के मैं
जी उठती हूँ..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें