खेतां ऊबी ज्वार गळगी,
साग की सारी क्यार गळगी
त्राहि-त्राहि मिनख बोळगो
ढब जा ए इंदर राजा,घणो हो ग्यो
जेठ लागतां चालू होगो
सावण बीतो भादो चाळगो
इश्यो-किश्यो चौमासो होगो
ढब जा ए इंदर राजा,घणो होग्यो
गांव डूब ग्या, ठांव डुब ग्या
ढोर-ढंगर आजी आया..
सूरज बापड़ो ठंडो पड़गो..
ढब जा ए..
~अक्षिणी